राजा परीक्षित की कहानी, भागवत पुराण की कथा!

टाइम्स इंडिया एक्सप्रेस,Publish By: अनिल कुमार रैना,Updated,Times 11:12 PM

भागवत कथा में राजा परीक्षित की कथा सुनाई महात्मा गायत्री देवी ने जिसमे सुनाया कैसे शुकदेव मुनि ने राजा को भगवान की कथा सुनाई और सात दिन लगातार कथा सुनाई और सातवे दिन बैकुंठ धाम से भगवान ने राजा को लेने के विमान भेजा और राजा परीक्षित की आत्मा भगवान के बैकुंठ धाम में निवास करने लगे

राजा परीक्षित की पूरी कहानी श्राप क्यों मिला

राजा परीक्षित पांडवों का पोत्र अभिमन्यु का पुत्र था और कोरवो को खत्म करने के बाद पांडवों के बड़े भाई युधिष्ठिर ने हस्तिनापुर का राज किया और उसके बाद अर्जुन के पुत्र राजा परीक्षित को बनाया गया और राजा परीक्षित एक धर्मात्मा आदमी थे और अपनी प्रजा का बड़ा ही अच्छा तरीके से ख्याल रखते थे अपनी प्रजा को दुखी नहीं देख सकते थे और नित्य परमात्मा की आराधना करना बड़े ही ज्ञानी पुरष थे. और वह द्वापर युग था जब द्वापर युग खत्म हुआ उसे समय के राजा परीक्षित ही थे और कलयुग शुरू होने वाला था

कल जो शुरू होते ही कलयुग राजा परीक्षित के सामने आया और कहने लगा महाराज द्वापर दुख खत्म हो चुका है और मेरा जग आरंभ हो रहा है आप राजा हैं और मैं आपसे रहने की आज्ञा चाहता हूं राजा परीक्षित ने देखा काले रंग का विशालकाय रूप धारण किए कलयुग और पूछा कि आपका दुख समय में कैसे-कैसे कम होंगे कर्मों के क्या फल होंगे. कलयुग ने अपनी परिभाषा बताइए और कहां कलयुग में पाप बढ़ेगा धर्म के नाम पर लोग एक दूसरे के साथ ठगी करेंगे अहंकार लोग क्रोध मोह के वश में रहेंगे.

राजा परीक्षित ने कलयुग को  पाप काम क्रोध लोभ मोह में स्थान दिया और कहा की सच्चे धर्म पुरुष को आप आप कभी कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे तो कलयुग कहने लगा महाराज लोग धर्म के नाम का पाखंड करेंगे और अपने-अपने कर्मों का फल बोगेंगे बस मुझे कोई धातु में भी स्थान दीजिए तो राजा परीक्षित ने कलयुग को स्वर्ण में स्थान दिया और कहा पाप से कमाया हुआ स्वर्ण में ही आपका बस होगा अपने कर्म और मेहनत से बनाया हुआ स्वर्ण उसमें आपका बस नहीं होगा और ना ही उसमें आपका कोई प्रभाव होगा

इतना कहकर कलयुग में राजा से कहा महाराज अब से मेरा युग शुरू हो रहा है और मैं इन्हीं जग में ही रहूंगा और मेरे युग में लोगों को फायदे भी बहुत होंगे और नुकसान भी बड़े होंगे क्योंकि इस युग में लोगों की उम्र कम होती जाएगी धर्म कर्म करने वाले लोग पाप करने लगेंगे और एक दिन ऐसा आएगा जब मेरे समय का अंतिम चरण होगा और पाप इतना बढ़ जाएगा लोग धन के लिए अपने खून के रिश्तों को भी नहीं समझेगा छोटी उम्र की कन्याएं मा बनना शुरू हो जाएगी उसे समय पाप कितना फैल जाएगा और भगवान को जन्म लेना पड़ेगा धर्म की स्थापना के लिए और भगवान श्री विष्णु कल्कि अवतार लेंगे

राजा परीक्षित
भागवत कथा

राजा परीक्षित के उपर कलयुग का वास

राजा परीक्षित कलयुग का स्थान देखकर अपने महल की ओर जाने लगा तभी उनके दिमाग में विचार आने लगे और अपने रथ पर बैठकर जंगल की ओर चल पड़े उनके मन में शिकार करने की अभिलाषा जगने लगी क्योंकि उनके सर पर जो मुकट था बह सोने का था और जरासंघ को मार कर राज्य जीता था और बह मुकट राजा परीक्षित ने पहना था तो कलयुग का वास हो गया और राजा की बुद्धि फिर गई और शिकार पर निकल गए और जंगल में रास्ता भटक गए आगे जाकर एक ऋषि की कुटिया देखी तो रुक गए

राजा ने देख की कुटिया में साधु ध्यान लगाए बैठा है राजा ने कहा साधु बाबा में रास्ता भटक गया हु मुझे बाहर जाने का मार्ग बताओ पर ऋषि ध्यान में थे और उन्होंने कोई जवाब नही दिया तो राजा को गुस्सा आ गया और कुटिया के पास एक मरा हुआ सांप था और क्रोध में आकर राजा ने साधु के गले में सांप डाल दिया और बहा से चल दिए. इस दृश्य को  बच्चे देख रहे थे और जाकर ऋषि पुत्र को सारी बात बताई की एक राजा ने तेरे पिता के गले में मरा हुआ सांप डाल दिया है.और ऋषि पुत्र को इस बात पर राजा पर क्रोध आया

और हाथ में जल लेकर श्राप दे दिया की जिस राजा ने मेरे पिता के गले में सांप डाला है ये सांप जीवित हो जायेगा और सात दिन बाद उसी राजा को डस लेगा जिस से राजा की मौत होगी. क्योंकि ब्राह्मणों की जीवा पर सरस्वती वास करती थी जिस से ब्राह्मण की कही बात सच हो जाती थी.ऋषि ध्यान से उठे तो उन्होंने अपने पुत्र को डांट दिया की तुमने बिना सोचे समझे श्राप क्यों दिया क्योंकि तुम सचाई नही जानते थे राजा ने ऐसा क्यों किया उसका कारण कुछ ओर हे.

तो ऋषि ने देखा की कलयुग शुरू हो गया है और कलयुग में लोग एक दूसरे को गाली के साथ बात करेंगे और अगर बाते सच होने लगी तो अनर्थ होने लगेगा तो ऋषि ने भगवान शिव से प्राथना की और ब्राह्मणों की जीवा पर किल्क मार दी जिस से ब्राह्मण को पहले किल्क का जप करना पड़ता है फिर ही कोई कर्मकांड मंत्रों का फल मिलता है.राजा परीक्षित को जब श्राप के बारे मैं पता चला तो पेरो तले जमीन खिसक गई और ऋषि से क्षमा मांगने आए पर श्राप अटल था और इसको कोई नही टाल सकता था.भगवान भी श्राप को निष्फल नहीं कर सकते थे.

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राजा परीक्षित की नींद उड़ गई और उसने ऋषियों से प्राथना की में मरना नहीं चाहता कोई उपाय बताए की मुझे क्या करना चाहिए केसे बचा जा सके.ऋषियों ने कहा व्यास ऋषि के पास चले  बह ही कोई हल निकाल सकते है.राजा परीक्षित व्यास के पास जाते हे और नमस्कार कर उपाय पूछा तो व्यास मुनि ने कहा इसका हल सिर्फ मेरा पुत्र शुकदेव मुनि निकाल सकते हैं और शुकदेव मुनि से राजा परीक्षित प्राथना करते हैं और कहते हैं प्रभु मेरे गुरु बन मेरा मार्ग दर्शन करे.

शुकदेव मुनि राजा परीक्षित को यज्ञ शाला बनाने को कहते है और सात दिन का अनुष्ठान करने को कहते है.राजा परीक्षित ने सारे इंतजाम कर दिए शुकदेव मुनि जी व्यास गद्दी का निर्माण कराते हैं और उस पर बैठ कर राजा को उपदेश देते हैं.और राजा परीक्षित को रोज भगवान के बारे मैं बताते हे सात दिन भागवत पुराण कथा सुनाई और सातवे दिन की कथा सुन कर राजा को मोह निकल गए बह जान गए की शरीर तो एक दिन मरना है पर आत्मा का कल्याण जरूरी है

शुकदेव मुनि ने राजा परीक्षित को आत्मा परमात्मा का सारा ज्ञान कराया और राजा परीक्षित ने अपने पुत्र जन्मज्ये को राजा बना दिया और सातवे दिन आसमान से भगवान विष्णु लोक से पार्षद विमान लेकर आए और राजा परीक्षित की आत्मा को ले गए .परीक्षित की मौत हुई बह सर्प फुल में बैठ कर आया और डस लिया.सबसे पहले भागवत कथा राजा परीक्षित ने सुनी और तब से कलयुग में भागवत पुराण को सबसे उत्तम ग्रंथ माना गया है क्योंकि आत्मा का कल्याण भागवत कथा है.

भागवत कथा में भगवान के अवतार भगवान की लीलाएं भगवान के बारे मैं सब विस्तार से बताया गया है.शुकदेव मुनि के भागवत कथा को सुनने सुनाने से इंसान पाप मुक्त हो जाता है .भागवत कथा को ज्यादा से ज्यादा सुन उसके सार को अपने जीवन में ग्रहण करना चाहिए.अपने घर में भागवत पुराण जरूर रखना चाहिए जिसके घर में भागवत पुराण रखा हो उस घर में अकाल मृत्यु टल जाती हैं.घर के मंदिर में रख रोज भागवत पुराण को धूप दीप प्रज्ज्वलित कर नमस्कार कर अपने जीवन को धन्य बनाए.

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